दोस्तों और प्यारे पाठकों, हमारे आज के लेखक जो आप सबके सामने अपने जीवन और लेखनी की चर्चा करने आएं हैं उनका नाम है श्री सुनील जोशी (Sunil Joshi) । सुनील जी का जन्म राजस्थान के जोधपुर शहर में 24 मई 1962 को हुआ।

उनकी स्कूली शिक्षा महाराष्ट्र व दिल्ली में हुई तथा कॉलेज की शिक्षा जोधपुर व कुरुक्षेत्र में हुईI उन्होंने एम.टेक की शिक्षा भी हासिल की जिसमें उनकी विशेषज्ञता का क्षेत्र इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग रहा। तत्पश्चात उन्होंने 35 वर्ष तक भारतीय रेलवे में कार्य किया I

सुनील जी (Sunil Joshi) के शौक हैं, क्रिकेट खेलना, किताबें पढ़ना विशेष कर शायरी, फिल्में देखना, लघु फिल्में बनाना और यात्राएं करना I उनके पसंदीदा शायर साहिर लुधियानवी साहब हैंI अब तक वह भारत के अलावा दुबई, श्रीलंका, नीदरलैंड व यूनाइटेड किंगडम की यात्राएं कर चुके हैं। हालांकि भारत का पूर्वी क्षेत्र अभी तक उनसे अछूता हैI

सेवानिवृत्ति के बाद से वह कभी बीकानेर या फिर कभी अपने बच्चों के पास एडिनबर्ग(स्कॉटलैंड) में रहते हैं I सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने ऋषिकेश से योगा टीचर की भी ट्रेनिंग करी है |

उनका पहला कहानी संग्रह “कच्चे पक्के रंग जिंदगी के” वर्ष 2022 में प्रकाशित हुआ था और फिलहाल वह कविताएं लिख रहे हैं। उन्हें आशा है इसी वर्ष वह अपनी पहली कविताओं की किताब भी प्रकाशित करवा पाएंगे। एक लेखक के रूप में उनका लक्ष्य यही है कि वह अपने जीवन के अनुभवों को अपने पाठकों से साझा कर सकें।   

फिलहाल वह एक मोटिवेशनल स्पीकर और लाइफ कोच के रूप में विद्यार्थियों व अन्य लोगों को अपनी सेवाएं दे रहे हैं I उनकी कोशिश है बीकानेर में एक योगा स्टूडियो खोलने की और योग द्वारा लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लाने कीI

उनकी किताब पढ़ने, लिखने से जुड़ी सबसे अनमोल यादें यही हैं कि बचपन में जब गर्मी की छुट्टियां हुआ करती थी तब वह हिंदी के उपन्यास बहुत पढ़ते थे और ज्यादातर कर्नल रंजीत के जासूसी उपन्यास I इसके अलावा क्यूंकि उन्हें शायरी का शौक था तो कई शायरों को भी पढ़ते थे I जब भी उन्हें खाली समय मिलता था तब लाइब्रेरी जाकर वहां कोई ना कोई पुस्तक अथवा पत्रिका पढ़ा करते थे। इसी के साथ उन्हें नई पुस्तके खरीदने का भी काफी शौक था I

उनके लेखन पर उनकी पत्नी स्वर्गीय डॉ. (श्रीमती) रजनी जोशी का खास प्रभाव रहा है। कोई भी पाठक यदि उनकी किताब पढ़ कर उन्हें कोई सुझाव अथवा अपनी प्रतिक्रिया दे तो उन्हें बहुत अच्छा लगता हैI

उनके पाठक उनसे निम्न दिए हुए लिंक्स पर संपर्क कर सकते हैं।

Shri Sunil Joshi मोबाइल: 9414253107

ईमेल: suniljoshibkn@gmail.com

ट्विटर: @joshiSaniljoshi

यूट्यूब: https://www.youtube.com/@suniljoshi9952

सबसे पहले तो मैं पाठकों से आपका परिचय कराना चाहती हूं, अतः अपने विषय में कुछ जानकारी हम सबके साथ साझा करें I

मेरा परिचय साधारण है, मैं एक साधारण व्यक्ति हूं और अभी कुछ समय पूर्व ही रेल सेवा से सेवानिवृत्त हुआ हूँ I मेरा जन्म जोधपुर में हुआ और रेल सेवा के दौरान कई जगह नौकरी करने के पश्चात बीकानेर से सेवानिवृत्त हुआ I

लगभग 1 वर्ष पूर्व मेरी धर्मपत्नी डॉ. रजनी जोशी के देहांत के बाद से जिंदगी में काफी अकेलापन है लेकिन अपने दोनों बच्चों के सहारे जैसे तैसे जिंदगी का यह सफर तय कर रहा हूँ I

मुझे पढ़ने लिखने का शौक शुरू से ही है और मैंने कुछ लघु फिल्में भी बनाई है I मुझे क्रिकेट खेलने का और शायरी पढ़ने व सुनने का शौक है I मैं आज भी 60 वर्ष से अधिक उम्र वालों के लिए जो क्रिकेट प्रतियोगिताएं देश व विदेश में आयोजित होती है उसमें मैं भाग लेता हूं I मेरे पसंदीदा शायर साहिर लुधियानवी साहब है I

अपने बचपन की कोई ऐसी घटना बताइए, जिसने सबसे ज्यादा आपको प्रभावित किया I

मुझे बचपन की दो घटनाएं अच्छी तरह से याद है जिसने मेरे ऊपर बहुत असर किया I
पहली घटना तब की है जब मैं तीसरी कक्षा में था I उस समय मेरे पिताजी ऑर्डनेंस फैक्ट्री में कार्यरत थे और उनकी पोस्टिंग महाराष्ट्र के चंद्रपुर में थी I इस कक्षा में मेरा एक दोस्त था रिचर्ड जो मेरे पास ही बैठता था और शायद कक्षा में उसका मैं अकेला ही दोस्त था I

एक दिन हमारी टीचर ने नई नोटबुक लाने को कहा I लेकिन मैं अगले दिन नोटबुक ले जाना भूल गया I जो नोटबुक नहीं लाए थे उन्हें टीचर स्केल से हथेलियां पर मार रही थी I जब रिचर्ड को मालूम पड़ा की मैं नोटबुक लाना भूल गया हूं तो उसने तुरंत अपनी नोटबुक मुझे दे दी और मेरे बदले उसने टीचर से मार खाई I

इस घटना से जिंदगी में उस छोटी सी उम्र में ही दोस्त व दोस्ती का मतलब समझ आ गया और आज भी जब मैं उस घटना को याद करता हूँ तो भावुक हो जाता हूं और आज भी रिचर्ड को दिल से धन्यवाद देता हूं I रिचर्ड ने जो दोस्ती का पाठ पढ़ाया उसे मैं कभी नहीं भूला और ताउम्र मैंने जिस किसी से भी दोस्ती करी तो दिल से निभाईI

दूसरी घटना महाराष्ट्र के वरणगांव की है जब मैं छठी कक्षा में था I हम जहां रहते थे वहां एक क्लब था जिसमें फुटबॉल व क्रिकेट की जूनियर और सीनियर टीमें थी I और मैं फुटबॉल व क्रिकेट दोनों की जूनियर टीम का कप्तान था I इस पर कई लोगों ने आपत्ति जताई और हमारे सेक्रेटरी जिनका नाम श्री दासु था उनसे शिकायत करी I इस पर दासु जी ने मुझे हटाने से बिल्कुल इनकार कर दिया I और उस वक्त उन्होंने जो एक वाक्य कहा मेरे लिए वह मुझे आज भी याद हैI

उन्होंने कहा सुनील जो भी काम करता है पूरे मन से करता है और पूरे दिल से खेलता और अच्छा खेलता है इसलिए दोनों टीम का कप्तान वही रहेगा I उनकी इस बात से मुझ पर इतना गहरा असर हुआ की ताउम्र मैंने जो भी काम किया या जो भी काम मुझे दिया गया उसमें मैंने अपना 100% दिया और उस कार्य को पूरा मन लगाकर किया I

35 वर्ष तक रेल अधिकारी के रूप में कार्य करने का आपका सफर कैसा रहा I

वैसे तो मैं रेलवे में संकेत एवं दूरसंचार विभाग में था लेकिन कुछ समय के लिए मैंने वाणिज्य व समीक्षा विभाग में भी कार्य किया I मैंने विशेष रूप से दिल्ली बीकानेर कानपुर वीजयपुर में कार्य किया I

भारतीय रेलवे में कार्य करते हुए बहुत अच्छा लगा, जैसा कि कहा जाता है भारतीय रेल भारत की जीवन रेखा है तो इसमें कार्य करते हुए लोगों की सेवा करने का अवसर मिला I भारतीय रेल भारत की सबसे बड़ी सरकारी संस्था है और उसमें किसी भी पद पर कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त होना एक गौरव की बात है I

भारतीय रेल में कार्य करते हुए देश की कई जगहों को देखने का अवसर मिला और कार्य के दौरान कई चुनौतियां भी आई लेकिन उन चुनौतियों का भी अपने साथियों के साथ सफलतापूर्वक सामना किया I

आप की कहानियों में भारतीय समाज के विविध रंग देखने को मिलते हैं, इन्हें कहानियों के रूप में लिपिबद्ध करने का विचार आपके मन में कब, क्यों और कैसे आया?

कहानी लिखने के लिए मेरी पत्नी डॉ रजनी जोशी ने प्रेरित किया I और ऑफिस में मेरे मित्र श्री अनिल शर्मा जो की राजभाषा अधिकारी थे उन्होंने प्रेरित किया I मैं अक्सर हमारे रेलवे की जो पत्रिका प्रकाशित होती थी उसके लिए भी कहानी लिखता था I व्यस्त नौकरी होने की वजह से कभी किताब छपवाने का समय नहीं मिला I आखिरकार सेवानिवृत्ति के बाद ही मैं अपना पहला कहानी संग्रह प्रकाशित करवा पाया I

कहानी लिखने से पूर्व आपने कोई योजना बनाई थी अथवा जैसे-जैसे भाव आते रहे कहानी अपना आकार ग्रहण करती रहीं?

मेरे विचार में कहानियां और कविताएं किसी योजना के तहत नहीं लिखी जा सकती I सही मायने में हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में जो कुछ हम देखते हैं, जो कुछ हमारे साथ घटित होता है ,हम जो सुनते हैं, हम जो समाचारों में देखते हैं या किसी और से सुनते हैं वही सब बातें कहीं ना कहीं हमारे ज़हन में रह जाती हैं और यही सब जब हम लिखने बैठते हैं तो किसी कहानी या कविता का रूप ले लेती है I

कहानी संकलन का शीर्षक “कच्चे पक्के रंग जिंदगी के” अपने नाम की सार्थकता सिद्ध करता है I यह शीर्षक आपने सोच -विचार कर रखा है अथवा यह अनायास ही आपके मन में उत्पन्न हुआ?


मैं अपने कहानी संग्रह का शीर्षक कुछ अलग रखना चाहता था इसलिए यह कह सकते हैं कि यह नाम थोड़े सोच विचार के बाद ही रखा गया है I

यह आपका पहला कहानी संग्रह है परंतु, इसकी भाषा और शैली सधी हुई है I इस संबंध में अपने विचार अभिव्यक्त कीजिए I

सबसे पहले तो मैं आपका आभार प्रकट करता हूँ की आपको मेरी कहानियों की भाषा और शैली पसंद आई I क्या है कि हम जब छोटे थे तब पैन फ्रेंड्स हुआ करते थे यानी कि पत्र -मित्र I मतलब की हर सप्ताह अपने मित्रों को पत्र लिखना I इसका सबसे बड़ा फायदा यह हुआ की मित्रता के साथ-साथ लिखने की आदत भी हो गई और अपनी बात को प्रभावशाली ढंग से कैसे लिखा जा सकता है वह भी सीखने में मदद मिली I इसलिए मुझे लगता है की मेरी भाषा और शैली में पत्र मित्रता का बहुत बड़ा योगदान है I

आपकी रुचि केवल कहानी लेखन में है या फिर भविष्य में आप अन्य विधाओं में भी लेखन करना चाहेंगे?

रुचि तो मेरी कहानी वह कविता दोनों में है लेकिन मुझे कविताएं लिखना थोड़ा कठिन लगता हैI हालांकि आपकी जानकारी के लिए बता दूं फिलहाल मैं कविताएं ही लिख रहा हूं और मेरी अगली पुस्तक कविताओं की ही होगी I

साहित्य के क्षेत्र में आपकी भावी योजनाएं क्या है और आप मुख्यतः किस विषय पर लिखना अधिक पसंद करेंगे?

ऐसी कोई विशेष योजना तो नहीं है लेकिन क्योंकि मुझे यात्राएं करने का बहुत शौक है इसलिए बहुत जल्द अपने यात्रा वृतांत लिखने का भी विचार कर रहा हूंI

अपने पाठकों के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे ?

मेरा तो पाठकों से यही कहना है कि वह इस मोबाइल व इंटरनेट के युग में भी किताबें पढ़ना ना छोड़े क्योंकि किताबें पढ़ने का एक अलग ही आनंद है I मैंने महसूस किया है की आज की युवा पीढ़ी ज्यादातर अंग्रेजी किताबें ही पढ़ते हैं, तो मेरा उनसे निवेदन है वह हिंदी के लेखकों को भी पढ़ा करें जिससे कि हिंदी के लेखको भी प्रोत्साहन मिले और वह और अच्छा लिखने का प्रयास करें I

bookGeeks के लिए कुछ शब्द?

bookGeeks का मैं धन्यवाद करना चाहूंगा कि उनकी वजह से मेरी किताब को ज्यादा से ज्यादा पाठकों तक
पहुंचने में मदद मिलेगी और आपके इस सराहनीय कार्य की मैं प्रशंसा करता हूँ की आप लेखकों व पाठकों के मध्य एक सेतु का कार्य कर रहे हैं I मुझे इस बात की भी खुशी है कि आपके यहां की गई समीक्षा काफी विस्तृत होती है और हर कोण से पुस्तक का सही आकलन होता है जैसे विषय -वस्तु, भाषा, लेखन व अन्य I आप इसी तरह लेखको व पाठकों की मदद करते रहे और मैं आपके सुनहरे भविष्य की कामना करता हूं और इसके लिए अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं I

आप ‘कच्चे-पक्के रंग ज़िंदगी के'(Kachche Pakke Rang Zindagi Ke) कहानी संग्रह की प्रति नीचे दिए हुए अमेज़ॉन लिंक से खरीद सकते हैं।

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