विषय वस्तु: 4/5
पात्र: 4/5
भाषा: 3/5
लेखन: 4/5
उपसंहार: 5/5

पारिवारिक व्यस्तताओं के कारण बहुत समय से पढ़ना- लिखना मानो छूट ही गया था। परंतु, यह खालीपन हमेशा कचोटता रहता था। लंबे अंतराल के बाद पढ़ने के लिए जो पहली पुस्तक मेरे हाथों में आई – वह थी ‘कच्चे- पक्के रंग ज़िंदगी के’।

यह एक कहानी- संकलन है। जिसमें जीवन और जगत से जुड़ी हुई 16 कहानियों को संकलित किया गया है तथा इसके कहानीकार सुनील जोशी जी हैं।

जहाँ तक सुनील जोशी जी के परिचय की बात है उनका जन्म जोधपुर राजस्थान में सन् 1962 में हुआ था वह भारतीय रेलवे को अधिकारी के रूप में 35 वर्ष तक अपनी सेवाएं प्रदान कर कुछ समय पूर्व ही सेवा निवृत्त हुए हैं। यह उनका पहला कहानी संग्रह है, जिसमें उन्होंने जीवन के विभिन्न पड़ावों पर जो अनुभव प्राप्त किए उन्हें पाठकों से साझा करने का सफल प्रयास किया है।

दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि दैनिक जीवन में प्रतिदिन घटित होने वाली ऐसी घटनाओं को उन्होंने कहानियों के सांचे में इस प्रकार ढ़ाला है कि वे मानव मात्र का मार्गदर्शन करने के साथ-साथ कदम- कदम पर उन्हें सचेत  करती हैं तो कभी दबे पांव आकर कोई ना कोई संदेश भी दे जाती हैं।

सुनील जोशी जी कोई प्रतिष्ठित कथाकार नहीं हैं ।इस तथ्य को उन्होंने पुस्तक में अपनी बात के अंतर्गत स्वीकार करते हुए लिखा है-“यूं तो मैं कोई लेखक नहीं हूं लेकिन कई बार मन में विचार आया कि यह सब कुछ जो मेरे सामने अथवा मेरे साथ हो रहा है उसे किसी न किसी रूप में समाज के सामने लाऊँ।“

उनका कहानी संकलन ‘कच्चे पक्के रंग ज़िंदगी के’ (Kachche Pakke Rang Zindagi Ke) की कहानियाँ हमारे दैनिक जीवन या हमारे आसपास घटित होने वाली छोटी-छोटी ऐसी कहानियों का पुष्प गुच्छ है जो विभिन्नताओं से भरे चरित्रों, मानवीय संवेदनाओं, शुद्ध एवं कुत्सित मानसिकताओं से युक्त समाज से पाठकों का परिचय कराता है।

उनकी ‘एहसास’ कहानी करोना काल में अकेलेपन की त्रासदी को झेलते हुए स्टेशन मास्टर की वेदना और निरीक्षण अधिकारी की संवेदना का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करती है तो ‘रीचार्ज’ कहानी ऐसे रिश्तों का ताना-बाना लेकर बुनी गई है जो दूरी होने पर भी कभी समाप्त नहीं होते वरन वर्षों के अंतराल के बाद भेंट होने पर भी पूर्ववत बने रहते हैं।

असली ‘हकदार’ कहानी में स्वार्थपरता अपने चरम पर पहुंची हुई दिखाई देती है ।’पूरक’ निम्न मध्यम- वर्गीय परिवारों की दुश्चिंताओं और संयुक्त परिवारों की महत्ता को उद्घाटित करती हुई एक ऐसी कहानी है जो बहुत गहरा संदेश हमारे समाज को देती है। संकट आने पर संयुक्त परिवारों की एकजुटता पलकों की कोरों को भिगो देती है।

विषय वैविध्य सुनील जोशी जी के समूचे कहानी संग्रह में दिखाई देती है ।महिलाओं की सुरक्षा, सरकारी विभागों के घोटाले, कर्मचारियों का मानसिक उत्पीड़न, प्रत्येक स्तर पर होने वाली राजनीति आदि विषयों पर उनकी लेखनी बखूबी चली है।

आपकी ये तो वह सुबह नहीं, ईमानदारी, विरोध, एक सफ़र, ज़िम्मेदारी, ज़मीर ,मान- सम्मान, सच्चा रंग आदि कहानियाँ भी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

रिश्ते-नाते, सामाजिक सरोकार और विद्रूपताओं के बीच उनकी ‘इश्क’ कहानी ठंडी हवा के झोंके की तरह मन के सारे ताप को हरने में पूर्णतः सक्षम है।

‘कच्चे-पक्के रंग ज़िंदगी के’ (Kachche Pakke Rang Zindagi Ke) कहानियों का एक ऐसा अनूठा संसार है ,जो कहीं ना कहीं इसके पात्रों से पाठकों का तादात्म्य स्वत: स्थापित कर लेता है। यथार्थ की भाव- भूमि पर विचरते कहानियों के पात्र हमारे जाने- पहचाने से हैं। जिनसे जीवन में कभी न कभी किसी न किसी मोड़ पर मुलाकात हो ही जाती है।

पात्रों के बीच होने वाले छोटे-छोटे संवाद कहानी को गति प्रदान करने के साथ-साथ मन को भी मोह लेते हैं।

जहां तक संकलन की भाषा का प्रश्न है सधी हुई सीधी- सरल व्यावहारिक भाषा का ही प्रयोग सुनील जी की कहानियों में दिखाई देता है। आटे में नमक, ढाक के तीन पात, बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद, आग बबूला होना जैसे मुहावरों का प्रयोग भी उन्होंने बड़ी कुशलता के साथ किया है।

शैली की दृष्टि से देखा जाए तो वर्णनात्मक और संवादात्मक शैली का प्राधान्य सभी कहानियों में दिखाई देता है। कहीं-कहीं संवाद बड़े हो गए हैं परंतु यह संदेश परक हैं इसलिए वातावरण को बोझिल न बनाकर पाठकों में उत्सुकता उत्पन्न करते हैं।

कहीं-कहीं वर्तनी और उर्दू के शब्दों में नुक्ता संबंधी अशुद्धियाँ हैं। परंतु, ये भाव-संप्रेषण में किसी भी प्रकार का व्यवधान उपस्थित नहीं करतीं। अपने अभिन्न मित्र को समर्पित उनका आलेख बहुत मर्मस्पर्शी है।

इस कहानी- संकलन के जिस अंश ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया है वह है उसका संदेश परक होना। प्रत्येक कहानी समूचे समाज को कुछ ना कुछ संदेश देती है और जीवन की सच्चाइयों से रूबरू कर आती है तथा सही अर्थों में समाज के लिए एक सच्चे मार्गदर्शक का कार्य भी करती है।

सुनील जोशी जी के इस कहानी संग्रह की सराहना करते हुए मैं साहित्यिक क्षेत्र में उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए प्रत्येक वर्ग के पाठकों को इसे पढ़ने की संस्तुति भी करती हूँ क्योंकि इस संकलन में जितनी भी कहानियाँ हैं उनकी उपादेयता को नकारा नहीं जा सकता।

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