
कहानी: 4.5/5 पात्र: 4.5/5 लेखन शैली: 5/5 उत्कर्ष: 4.5/5 मनोरंजन: 4.5/5
पंकज कपूर किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। वह रंगमंच, टेलीविजन और प्रख्यात फिल्म अभिनेता के साथ-साथ एक कुशल निर्देशक भी हैं। वह एक ऐसे कलाकार हैं जिन्हें तीन राष्ट्रीय और एक फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उनके पुत्र शाहिद कपूर हिंदी सिनेमा के लोकप्रिय तथा प्रतिभाशाली अभिनेता हैं।
पंकज कपूर द्वारा लिखा गया “दोपहरी” उनका प्रथम उपन्यास है, जिसका प्रकाशन सन 2019 में हार्पर कॉलिंस पब्लिशर्स इंडिया द्वारा किया गया है। पंकज कपूर के इस रुप से हम सभी अपरिचित हैं अतः उनके विषय में संक्षिप्त जानकारी मैं पाठकों से साझा करना चाहूंगी।
पंकज कपूर का जन्म 29 मई 1954 को लुधियाना, पंजाब में हुआ था। उपन्यास “दोपहरी” के लेखन से पूर्व उनकी रुचि कविता लेखन में अधिक रही है। फिल्म लेखन भी उन्होंने किया है। एक इंटरव्यू में उन्होंने स्पष्ट किया कि “दोपहरी” के प्रकाशन से पूर्व उन्होंने इस विषय पर फिल्म बनाने की दृष्टि से ही लिखने का विचार बनाया था। उपन्यास के रूप में आने से पूर्व संपूर्ण विश्व में इसके 50 से अधिक स्टेज शो किए जा चुके हैं और यह सिलसिला अभी भी जारी है।
उनको “दोपहरी” उपन्यास लिखने की प्रेरणा मुंबई के दादर क्षेत्र में रहने वाली एक एकाकी महिला से प्राप्त हुई। परंतु, जब उन्होंने इसे लिखना प्रारंभ किया तो इसकी पृष्ठभूमि अनजाने ही लखनऊ स्थानांतरित हो गई। यह पंकज जी का कुल 84 पृष्ठों में लिखा गया संक्षिप्त उपन्यास है, जिसे उन्होंने 4 दिन की अल्पावधि में पूर्ण किया है।
स्वतंत्र भारत में रियासतें समाप्त हो चुकी हैं, लेकिन नवाबों की पुरानी हवेलियां और उनकी शानो-शौकत कहीं-कहीं आज भी अपनी कहानी कहती हुई दिखाई देती है। नवाबों के शहर लखनऊ की एक ऐसी ही हवेली है – लाल हवेली, जिसकी मालकिन है अम्माँ बी। उनके शौहर का इंतकाल हो चुका है और बेटा जावेद परिवार सहित विदेश में रहता है।
अम्माँ बी जिस हवेली में लाल जोड़े में ऑस्टिन कार में सवार होकर आई थी, जहां उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय व्यतीत किया था, जिससे उनका भावनात्मक संबंध था, उसे किसी भी कीमत पर वह छोड़कर नहीं जाना चाहती हैं।
वह 65 वर्षीय महिला हैं और नितांत अकेली है। उनके घर का सारा कामकाज एक नौकर जुम्मन के जिम्मे है। जुम्मन के सहारे ही उनका जीवन कट रहा है। जुम्मन घर का सारा काम निपटा कर दोपहर और रात में अपने घर चला जाता है और यही समय उस विशालकाय हवेली में अम्माँ बी के लिए सबसे ज्यादा खौफनाक होता है, तथा एक अनजान भय उन्हें हर समय भयभीत करता रहता है। उनका समय इसी तरह धीरे-धीरे एकाकीपन से जूझते हुए बीतता जा रहा है |
उनके परिचित और शुभचिंतक इस अकेलेपन से मुक्त होने के लिए उन्हें किराएदार रखने की सलाह देते हैं परंतु अम्माँ बी इसके लिए तैयार नहीं होतीं । इस दौरान अनेक घटनाएं घटित होती हैं और अंततः अम्माँ बी हवेली का एक कमरा किराए पर देने के लिए राजी हो जाती हैं। बहुत जांच परख के बाद कमरा किराए पर उठा दिया जाता है। परस्पर छोटी-मोटी गलतफहमियां होती है परंतु अब अम्माँ बी के जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन होता है।
पंकज कपूर का उपन्यास “दोपहरी” 84 पृष्ठों में सिमटा हुआ एक बहुत ही संक्षिप्त उपन्यास है। छोटा कलेवर होने के बावजूद यह उपन्यास जिस उद्देश्य को लेकर रचा गया है वे उसमें पूर्णत: सफल है।
उपन्यास नवाबों के शहर लखनऊ पर आधारित है और नवाबी शानो-शौकत से जुड़ा हुआ है इसीलिए उपन्यासकार ने अवध की मिठास भरी उर्दू भाषा का प्रयोग किया है, परंतु यह उर्दू, पाठकों के लिए बाधक नहीं बनती वरन आसानी से अपनी बात को स्पष्ट कर देती है।
पंकज कपूर का “दोपहरी” उपन्यास उनके लेखन, शब्द-चयन और वाक्य विन्यास सभी दृष्टि से प्रभावित करता है। उनका कथन है कि यह उपन्यास उन्होंने जब लिखना आरंभ किया तो शब्द कागज़ पर स्वत: उतरते चले गए तथा उन्हें इसे लिखने के लिए ज़रा भी प्रयास नहीं करना पड़ा।
यदि पात्रों की दृष्टि से देखा जाए तो “दोपहरी” में पात्र संख्या बहुत कम है | प्रमुख पात्र के रूप में अम्माँ बी ही उपन्यास की सर्वाधिक महत्वपूर्ण पात्र हैं क्योंकि समूचे उपन्यास का ताना-बना उन्हीं को केंद्र में रखकर बुना गया है। इसके अतिरिक्त जुम्मन तथा सबीहा भी “दोपहरी” उपन्यास के महत्वपूर्ण पात्र हैं क्योंकि इन्हीं का आश्रय लेकर अम्माँ बी कहानी आगे बढ़ती है। जुम्मन एक ऐसा पात्र है जिसके अभाव में अम्माँ बी का जीवन मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
इन सबके अतिरिक्त अम्माँ बी के स्वर्गवासी शौहर के घनिष्ठ मित्र और उनके सच्चे शुभचिंतक सक्सेना साहब की भी “दोपहरी” उपन्यास में महत्वपूर्ण भूमिका है। यही नहीं वृद्ध आश्रम के मैनेजर श्रीवास्तव साहब, जुम्मन का मित्र नत्थू, नन्हे मियां, उनकी बेगम, दर्जी, जुम्मन की बीवी शरबती आदि अनेक ऐसे पात्र इस उपन्यास में है जिनकी भूमिका नगण्य होते हुए भी बहुत महत्वपूर्ण है।
दोपहरी उपन्यास का कथानक लाल हवेली से प्रारंभ होता है जहां वर्षों से सन्नाटा पसरा पड़ा है। अनेक घटनाओं के माध्यम से कथानक धीरे-धीरे आगे बढ़ता है और वृद्ध आश्रमों की कलई खोलता हुआ आज की नई पीढ़ी की नेक दिली की कहानी कहता हुआ अंततः चरमोत्कर्ष तक पहुंचता है।
पंकज कपूर द्वारा रचित “दोपहरी” उपन्यास मानव जीवन की दोपहर तथा उससे उत्पन्न होने वाली समस्याओं को पाठकों के सम्मुख लाने का सफल प्रयास है। उपन्यास की कहानी यथार्थ परक है और पंकज जी ने इन सच्चाइयों को बड़ी निष्पक्षता से प्रस्तुत किया है।
यह उपन्यास आरंभ से अंत तक रोचक है। जिस प्रकार उपन्यासकार की कलम एक बार इसकी शुरुआत करने पर रुकी नहीं और उसने उपन्यास पूरा होने पर ही विश्राम लिया उसी प्रकार पाठक भी जब इसे पढ़ना आरंभ करता है तो पूर्ण करने के उपरांत ही विराम लेता है।
हवेली के चित्र और अम्माँ बी की स्मृतियां बहुत रोचक है। वह स्थान जहां अम्मा और जुम्मन की बातचीत तथा नोकझोंक सी होती है बहुत लाड़-दुलार से भरे और लुभावने लगते हैं। उपन्यास के संवाद और भाषा बोझिल वातावरण को भी ताज़गी से भर देते हैं।
संक्षेप में कहूं तो “दोपहरी” उपन्यास को पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है जैसे यह हमारे अपने जीवन और पास पड़ोस से जुड़े ऐसे लोगों की कहानी है जो अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुके हैं तथा एकाकी जीवन व्यतीत करने के कारण उदासीन और निराश हो गए हैं।
उपन्यास का मूल भाव तथा उसकी उपादेयता और पंकज कपूर के उत्कृष्ट लेखन का आनंद तो पाठक इसको पढ़ने के बाद ही उठा सकेंगे। “दोपहरी” उपन्यास का अंग्रेजी अनुवाद लोकप्रियता के सभी आयामों का स्पर्श कर चुका है। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि सुधी हिंदी पाठक चाहे वह किसी भी आयु वर्ग के हों इसे पढ़कर आनंदित और लाभान्वित होंगे।
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