द गर्ल विद गोल्डन थॉट्स । आशुतोष जोगिया । पुस्तक समीक्षा

The Girl with Golden Thoughts Ashutosh Jogia द गर्ल विद गोल्डन थॉट्स

कहानी: 3.5/5
पात्र: 3.5/5

लेखन
शैली: 3/5
उत्कर्ष: 4/5
मनोरंजन: 3.5/5

आशुतोष जोगिया हिंदी उपन्यास के क्षेत्र में एक नया नाम है। इसीलिए उनका संक्षिप्त परिचय देना आवश्यक हो जाता है। जोगिया जी पेशे से डॉक्टर हैं और गुजरात के एक मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर हैं। आपके माता-पिता भी डॉक्टर हैं और जहाँ तक पुस्तकों को पढ़ने का प्रश्न है , वे अंग्रेजी की अपेक्षा हिंदी और गुजरती में पुस्तकें पढ़ना पसंद करते हैं। इसीलिए हिंदी में उपन्यास लिखने की प्रेरणा भी आपको अपने माता-पिता से प्राप्त हुई है |

 इसके अतिरिक्त ख्याति प्राप्त उपन्यासकार चेतन भगत, दुर्जोय दत्ता, प्रीती शेनॉय, और सवि शर्मा की हिंदी में अनुदित रचनाओं को पढ़कर उन्होंने यह निश्चय किया कि वह भी हिंदी में उपन्यास लिखेंगे । ‘द गर्ल विद गोल्डन थॉट्स’ से पहले वह तीन अंग्रेजी उपन्यासों की रचना कर चुके हैं। जिनमें से दो ई-बुक के रूप में उपलब्ध है। उनका यह हिंदी उपन्यास सन २०१९ में प्रकाशित हुआ और अब यह किंडल (ई-बुक) पर भी उपलब्ध है।

कथानक की दृष्टि से यदि देखा जाये तो यह एक विशुद्ध प्रेम कथा है।  परन्तु उपन्यास के बहुत बड़े अंश में भारतीय राजनीति और मीडिया की काली तस्वीर को दर्शाया गया है। यह उपन्यास आई.आई.टी, दिल्ली के तीन होनहार छात्रों अलीशा खंडेलवाल, व्योम खुराना, और भास्कर मेहरा को केंद्र में रखकर लिखा गया है । जो मूलतः राजनगर के निवासी हैं। तीनो ही धनी व्यावसायिक परिवारों से सम्बन्ध रखते हैं।  ये तीनों साथ-साथ पले-बढ़े हैं और परस्पर घनिष्ठ मित्र हैं। इनकी मित्रता ऐसी है कि ये एक दूसरे के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहते हैं।

उपन्यास का प्रारम्भ कॉलेज की परीक्षाओं की समाप्ति से होता है। लगभग सभी विद्यार्थियों को विभिन्न नामचीन कंपनियों में प्लेसमेंट मिल चुके हैं पर इन तीनों मित्रों को इसकी कोई चिंता नहीं है क्योंकि ये नौकरी न करके अपने-अपने पैतृक व्यवसायों को आगे बढ़ाने की इच्छा रखते हैं।

सभी विद्यार्थी घर वापसी की तैयारी में जुट गए हैं। व्योम और भास्कर भी अपने गृह नगर पहुँच गए हैं जबकि अलीशा दिल्ली में ही रुकी हुई है। स्टेशन पर उतरते ही व्योम का ड्राइवर उसे लेने आता है पर उसके घर ना ले जाकर अलीशा के घर ले जाता है। जहाँ अलीशा और व्योम दोनों के पिता उसका स्वागत करते हैं तथा उसे चुनाव लड़ने का प्रस्ताव देकर अचंभित कर देते हैं।

पहले तो व्योम इसके लिए तैयार नहीं होता परन्तु यह समझाने पर की यह चुनाव उसे जीत के लिए नहीं बल्कि हारने के लिए लड़ाया जा रहा है तो वह सभी के दबाव और अलीशा की सहमति के सामने विवश होकर चुनाव लड़ने को तैयार हो जाता है।

इसके बाद तीनों मित्र एक ग्रुप के साथ शिमला ट्रिप पर जाते हैं जहाँ रास्ते में इनकी भेंट निर्जरा नामक युवती से होती है। तीनों ही उसकी विद्वतापूर्ण बातों और आकर्षक व्यक्तित्व से प्रभावित होते हैं। निर्जरा की बातें सुनकर भास्कर और व्योम को लगता है कि इस युवती के विचार उस लेखिका से मेल खाते हैं जो ‘द गर्ल विद गोल्डन थॉट्स’ के नाम से एक कॉलम लिखती है। अनेक प्रयासों और घटनाओं के फलस्वरूप चारों में मित्रता हो जाती है और ट्रिप समाप्त होने के बाद सभी राजनगर लौट आते हैं।

तदुपरांत घटनाक्रम में बड़ी तेज़ी से परिवर्तन होता है जो कहानी को आगे बढ़ाने में सहायक है। उपन्यास के मध्यभाग में उपन्यासकार ने राजनीतिक उठा-पठक और बिकाऊ मीडिया का जिस सूक्ष्मता से चित्रण किया है उससे यही लगता है कि उपन्यासकार की इन विषयों पर पकड़ बहुत मज़बूत है।परन्तु इन वर्णनों का एक कमज़ोर पक्ष यह भी है कि इनके विस्तार ने उपन्यास को बोझिल और उबाऊ बना दिया है और ऐसा प्रतीत होता है कि लेखक अपने मूल कथ्य से भटक गया है।

बारहवें अध्याय से कहानी थोड़ी गति पकड़ती हुई दिखाई देती है। इस अध्याय में उपन्यास के चौथे महत्वपूर्ण पात्र निर्जरा का बचपन , उसका व्यक्तित्व और उसके माता-पिता का परिचय प्रस्तुत किया गया है। जैसे-जैसे कथा आगे बढ़ती है अनेक रोचक और रहस्यमयी घटनाएं घटित होती हैं और उपन्यासकार उत्तरोत्तर अपने मूल विषय पर अग्रसर होता दिखाई देता है तथा अंततः चरमोत्कर्ष तक सफलतापूर्वक पहुंच जाता है।

उपन्यास का कथानक एक नयी दृष्टि और नए विषय को लेकर रचा गया है। यह एक ऐसा उपन्यास है जिसमें जीवन एक सीधी- सादी सपाट सड़क पर चलता हुआ दिखाई देता है। यदि थोड़े बहुत उतार-चढ़ाव हैं तो वे प्रेम को लेकर ही हैं। उपन्यास का अंत सुखद है।

जहाँ तक भाषा का प्रश्न है – भाषा शिक्षित और अभिजात्य वर्ग में प्रयुक्त की जाने वाली हिंदी है। जिसमें उर्दू और अंग्रेजी के ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है जो हमारी हिंदी भाषा में ऐसे घुल-मिल गए हैं जैसे वे हिंदी शब्द ही हों। भाषा कसी हुई सीधी सरल आम बोलचाल की भाषा है। बहुप्रचलित मुहावरों का समावेश उपन्यास की भाषा में स्वतः हो गया है। ये मुहावरें भाषा की सौंदर्य वृद्धि के साथ-साथ भावों और विचारों की अभिव्यक्ति में भी सहायक बन गए हैं। आ बैल मुझे मार, दूर की कौड़ी, शंका के बीज बोना, मुँह पर बारह बजना आदि कुछ ऐसे ही मुहावरे हैं।

इतनी विशेषताओं के बाद भी ‘द गर्ल विद गोल्डन थॉट्स’ की भाषा में अनेक व्याकरणिक त्रुटियां दिखाई देती हैं। इनमें सबसे बड़ी त्रुटि मात्राओं की है। जैसे – तुने(तूने), चीढ़(चिढ़), जाहीर (जाहिर), पिती(पीती) आदि। इसके अतिरिक्त वचन और लिंग संबंधी दोष भी भाषा को कमज़ोर बना देते हैं। परन्तु यह एक ऐसे उपन्यासकार की भाषा है जिसकी हिंदी की अपेक्षा अंग्रेजी पर पकड़ अधिक मज़बूत है। अतः इन दोषों को कुशल संपादन द्वारा सुधारा जा सकता है।

पात्रों की दृष्टि से यह एक सफल उपन्यास है क्योंकि इसमें केवल चार मुख्य पात्र हैं। और इन्हीं के इर्द-गिर्द सम्पूर्ण कथानक को बुना गया है। इस कारण पाठक को कहीं किसी दुविधा का सामना नहीं करना पड़ता है। उपन्यास का शीर्षक जिज्ञासा उत्पन्न करता है और चरम तक पहुँचते-पहुँचते इसकी सार्थकता भी सिद्ध कर देता है। संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि यह उपन्यास, जो प्रेम और मित्रता पर आधारित है युवा वर्ग में लोकप्रियता प्राप्त करने में समर्थ है। थोड़ी बहुत गलतियाँ हैं जिन्हे आसानी से सुधारा जा सकता है। डॉ आशुतोष जोगिया जिन्होंने अंग्रेजी के स्थान पर यह उपन्यास हिंदी में लिखा, बधाई के पात्र हैं। ऐसे ही नए कलेवर और नए विषयों पर हिंदी में लिखे उनके अन्य उपन्यासों की भी प्रतीक्षा रहेगी।

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