औघड़ (Aughad) | नीलोत्पल मृणाल | पुस्तक समीक्षा
‘औघड़’ में एक ओर दलितों की सामाजिक स्थिति का वर्णन किया गया है तो दूसरी ओर बिहार और झारखंड के चुनावों में बाहुबलियों के प्रभुत्व को भी दर्शाया गया है। इसमें प्रेमचंद जी का यथार्थवाद है तो फणीश्वर नाथ रेणु के उपन्यासों की आंचलिकता भी है।