कहानी: 4/5
पात्र: 4/5
लेखन: 4/5
क्लाइमेक्स: 3.5/5
मनोरंजन: 4/5

मेरे कुछ विचार

हिंदी बचपन से ही मुझे बहुत प्रिय रही है किन्तु जितना हिंदी का उपयोग मैं अपनी बोलचाल में करती हूँ इसका उतना प्रयोग अपने लेखन में नहीं कर पाती। यही कारण है कि हिंदी की यह मेरी पहली पुस्तक समीक्षा है। इस समीक्षा का अवसर मुझे तब प्राप्त हुआ जब उभरते हुए उपन्यासकार उत्कर्ष श्रीवास्तव ने मुझे उनकी पुस्तक रणक्षेत्रम प्रथम खंड की समीक्षा करने का प्रस्ताव दिया। यह मेरी हिंदी में लिखी गयी पहली पुस्तक समीक्षा है इसीलिए मैं अपने पाठकों से अनुरोध करना चाहूंगी की यदि थोड़ी बहुत गलतियां हो जाएं तो मुझे क्षमा अवश्य करियेगा। आने वाली समीक्षाओं में मेरा निरंतर यही प्रयास रहेगा की मैं अपने हिंदी लेखन में पर्याप्त सुधार करूँ।

कहानी कुछ इस प्रकार है

आज जिस कहानी के विषय में मैं आपको बताने जा रही हूँ वह है रणक्षेत्रम: प्रथम खंड जिसकी रचना उत्कर्ष श्रीवास्तव ने की है। यह कहानी हमें ले जाती है एक ऐसे काल में जहाँ असुर, देवता, नाग तथा मनुष्य एक साथ निवास करते हैं। यह उस युग की कहानी है जहाँ वामन अवतार द्वारा राक्षस महाबली को पाताल भेजने के उपरांत असुरों का मानव जाति पर दबाव काफी कम हो चुका है। परन्तु यह बात असुरों के महागुरु भैरवनाथ को कदापि स्वीकार नहीं है। भैरवनाथ एक ऐसे षड़यंत्र की रचना करते हैं जिससे एक साहसी और असीमित शक्ति वाला असुर “मार्केश” सदैव के लिए मानवों के विरुद्ध हो जाये और उनके पतन का प्रण ले ले।

उनका यह षड़यंत्र सफल होता है और रक्षराज मार्केश का पलड़ा मानवों पर भारी पड़ने लगता है। उसके अत्याचारों से पीड़ित पृथ्वी तथा मानवों की रक्षा करने हेतु नियति चार महायोद्धाओं को जन्म देती है। यह योद्धा है महाराजा विक्रमाजीत के पुत्र तेजस्वी, नागों के राजा युगांधर, महाबली अखंड और सर्वश्रेष्ठ योद्धा सूर्यम। यह कहानी उस आने वाले महासंग्राम की है जिसमें इन चार महाबालियों का सामना स्वयं रक्षराज मार्केश के साथ होगा।

कुछ इस प्रकार है उत्कर्ष की लेखन शैली

लेखक ने इस कहानी की रचना बहुत ही भव्य तरीके से की है। कहानी में अनेक पात्र हैं और यह कहानी अनेक छोटी छोटी कथाओं का सम्मिश्रण है। गौर करने वाली बात यह है कि किसी भी मोड़ पर कहानी फीकी नहीं पड़ती बल्कि पृष्ट दर पृष्ट यह और भी मनोरंजक होती जाती है। जिस बड़े स्तर पर रणक्षेत्रम की रचना की गयी है उसे आसानी से एक महागाथा कहा जा सकता है। जिस तरह से इस कहानी में पौराणिक पात्रों एवं कहानियों का उपयोग किया गया है वे सराहनीय हैं। अगर आप गंभीरता से विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि कहीं न कहीं इसमें उल्लिखित कई पात्रों का किसी न किसी हिन्दू कथा से सबंध अवश्य है। इसी कारण इसे पढ़ने में बहुत आनंद आता हैं क्यूंकि कहानी की एक बहुत बड़ी विशेषता है कि यह बहुत ही सरलता से पौराणिक एंड काल्पनिक कड़ियों को जोड़ती है।

चलिए बात करते हैं पात्रों की

कहानी के सभी पात्र अद्भुत और रोचक हैं। हर पात्र अपनी भूमिका बहुत ही सलीके से निभाता है। जहाँ तेजस्वी और युगांधर जैसे योद्धा क्षत्रिय धर्म को निभाते हुए धर्म का निर्वाह करतें है वहीँ रक्षराज मार्केश और उसके बंधुजन तथा अन्य राक्षस जाति के लोग अधर्म फ़ैलाने में लगे रहते हैं। सभी धार्मिक योद्धा पाठकों के लिए प्रेरक हैं क्यूंकि वह अपने कर्तव्यों का भली भांति से पालन करतें हैं।

जानिए क्लाइमेक्स के बारे में

अगर क्लाइमेक्स की बात की जाये तो यहाँ थोड़ी कमियां दिखाई पड़ती हैं। इस कहानी का एक बहुत बड़ा रहस्य हमें शुरुआत में ही पता चल जाता है क्यूंकि लेखक इस रचना के प्रारम्भ में ही स्पष्ट कर देतें हैं कि रक्षराज की कहानी का अंत किस तरह होगा। इस कारण कहानी और उसके क्लाइमेक्स में पाठक की रुचि थोड़ी कम हो जाती है। जहाँ अन्य कहानियो में परिणाम की प्रतीक्षा और उसको जानने की उत्सुकता रहती है वहीँ इस कहानी में वह उत्सुकता थोड़ी ठंडी पड़ जाती है। इसका अर्थ यह नहीं कि कहानी पढ़ने योग्य नहीं है। रणक्षेत्रम निसंदेह एक ऐसी पुस्तक है जिसको पढ़ने में अत्यंत आनंद आता है और केवल क्लाइमेक्स के कारण इसकी अनदेखी करना मूर्खता होगी।

कितनी मनोरंजक है रणक्षेत्रम

इस विषय में जितना कहा जाये उतना कम होगा फिर भी संक्षिप्त में कहना चाहूंगी की रणक्षेत्रम एक ऐसी गाथा है जो न केवल आपका मनोरंजन करेगी बल्कि आपको कई माध्यमों से लाइफ लेसंस अर्थात जीवन के पाठ भी पढ़ा जाएगी। अगर आपको धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक गाथाओं में रुचि है तो इस कहानी को अवश्य पढियेगा।

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