कहानी: 4.5/5
पात्र: 4/5
लेखन शैली: 4/5
उत्कर्ष: 4.5/5
मनोरंजन: 4.5/5

कथाकार ऋषभ प्रतिपक्ष का कहानी संग्रह “Cric Panda Pon Pon Pon”अपने अनूठे शीर्षक के कारण बरबस ही पाठकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। यह उनकी प्रथम प्रकाशित कृति है जो eka और हिंदी युग्म के सहयोग से इसी वर्ष अर्थात 2020 में प्रकाशित हुई है।

जहां तक ऋषभ प्रतिपक्ष के परिचय का प्रश्न है, वह यूपी और बिहार से संबंध रखते हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। खूब पढ़ना और लिखना उनका शौक है। सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर उनकी पकड़ बहुत मजबूत है। विभिन्न विषयों पर लिखी गई पुस्तकों के साथ-साथ इतिहास पढ़ने में उनकी विशेष रूचि है। यही कारण है कि उनकी कहानियां ज्वलंत मुद्दों को बहुत सच्चाई से उठाती हैं तथा उन्हें कहीं ना कहीं सामाजिक, राजनैतिक और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से जोड़ती हैं।

उनकी इस कहानी संग्रह में कुल 14 कहानियां है जो एक दूसरे से सर्वथा भिन्न है परंतु इन सभी में एक समानता है कि यह हमारे समाज की किसी न किसी ऐसी समस्या को प्रस्तुत करती हैं जिन्हें हम जानते -बूझते हुए भी न करने का प्रयास करते हैं।

इन कहानियों मे दलित उत्पीड़न है, उच्च वर्ग के प्रति रोष है और किसी न किसी रूप में उनसे प्रतिशोध लेने का प्रयास है। कुछ कहानी कुछ सत मानसिकता को दर्शाती हैं। इन कहानियों में सांप्रदायिक मुद्दे हैं, धार्मिक विरोधाभास है, नौकरशाहों की पोल है तो नेताओं की झोल भी है। कहीं धार्मिक अंधविश्वासों के दुष्परिणामों को दर्शाया गया है तो कहीं दिनों दिन बढ़ती जा रही गैंगरेप और एसिड अटैक जैसी समस्याओं को भी बड़ी गंभीरता और ईमानदारी से प्रस्तुत किया गया है।

संग्रह की पहली कहानी गांधीजी का प्रतीक लेकर दलित आरक्षण, हिंदुत्व आदि विभिन्न समस्याओं पर प्रकाश डालती है। “गैंग रेप वाली मैया” कहानी इतनी मर्मस्पर्शी है कि पाठक के मन और मस्तिष्क दोनों को मथकर रख देती है। “माफी” भीड़ तंत्र के शिकार परिवार की कहानी है तो “मरा हुआ श्रवण कुमार” दो पीढ़ियों की सोच को हमारे सम्मुख प्रस्तुत करती है। “पीरियड” कहानी का विषय एकदम नया है और ऐसे विषय पर सच्चाई ,बेबाकी और ईमानदारी से लिखना वाकई हिम्मत का काम है।

इसके अतिरिक्त “मर्द”, “बैडमैन द गुड बैडमैन द बैड”, “सवर्ण की प्रेम कथा”, “फ्रेंड जोन”, “लालपुर का डीएम” आदि इस कहानी संग्रह की उल्लेखनीय कहानी हैं। जिनके पीछे कथाकार की सूक्ष्म और परिपक्व दृष्टि के दर्शन होते हैं। इन सभी कहानियों में कहानीकार ने समाज के नकारात्मक पक्ष को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है। यही कारण है कि इनमें सर्वत्र पारदर्शिता दिखाई देती है।

Cric Panda Pon Pon Pon की सभी कहानियों में कहीं कोई दुराव-छिपा नहीं है क्योंकि ऋषभ प्रतिपक्ष ने जैसा पढ़ा , सुना, देखा और अनुभव किया उसकी सच्ची तस्वीर पाठकों के सम्मुख ज्यों की त्यों रख दी है। इन कहानियों के माध्यम से उन्होंने जीवन की कड़वी सच्चाईयों को उजागर किया है और इनमें यथार्थ के साथ कल्पना का भी समावेश बखूबी किया है।

सभी कहानियों के विषय ऐसे हैं जिनसे हम परिचित होते हैं परंतु, इनको खुली आंखों से देखने के बाद भी हम अपनी आंखें मूंद लेते हैं। उनकी कहानियों ऐसी अभूतपूर्व शक्ति है जो अंतरमन तक पहुंच कर उसे गहरी चोट पहुंचाती है और पाठकों को इन मुद्दों की जड़ों तक पहुंचने, उन पर चिंतन -मनन करने और उन से जूझने के लिए प्रेरित करती है।

जहां तक ऋषभ प्रतिपक्ष की भाषा और लेखन शैली का प्रश्न है यह ऐसी है कि हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाले प्रत्येक वर्ग के पाठक को इसे पढ़ने और समझने के लिए विशेष श्रम की आवश्यकता नहीं होगी। कहानियों की तरह उनकी भाषा भी स्वच्छंद है, उसमें कोई बनावती पर नहीं है। संभव है उनकी स्वच्छंद भाषा पाठकों को रास ना आए।

उनकी सोच नई है, दृष्टि परिपक्व है और लेखन उत्कृष्ट। उनकी भाषा-शैली अद्भुत है। परंतु इतना अवश्य कहना चाहूंगी कि “क्रिक पांडा पों पों पों” मात्र एक कहानी संग्रह ना होकर एक समस्या है, भाव है और विचार है इसलिए इसे केवल मनोरंजन की दृष्टि से नहीं पढ़ा जा सकता। वास्तव में यह पुस्तक मनोरंजन के लिए लिखी ही नहीं गई है। अतः इसे शांति और धैर्य से एकाग्र चित्त होकर पढ़ने की तथा प्रत्येक विषय पर गंभीरता पूर्वक विचार करने और अपने हृदय को गहराई से टटोलने की आवश्यकता है।

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