बलिदानम् (Balidanam) | मनु सौंखला | पुस्तक समीक्षा

कहानी - 3.5/5
लेखन - 3/5
पात्र - 3/5
उत्कर्ष - 3.5/5
मनोरंजन – 3.5/5 

अंग्रेजी के बढ़ते हुए प्रभाव के बीच युवा साहित्यकारों में हिंदी की बढ़ती हुई लोकप्रियता प्रसन्नता का विषय है। नई हिंदी के ऐसे ही उभरते हुए उपन्यासकार हैं – मनु सौंखला।

उपन्यास पर चर्चा करने से पूर्व मैं उनका संक्षिप्त परिचय पाठकों से कराना आवश्यक समझती हूं। मनु सौंखला राष्ट्रीय प्रौद्योगिक संस्थान से स्नातक हैं तथा वर्तमान में सार्वजनिक क्षेत्र की एक तेल कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत हैं। “बलिदानम्” उपन्यास से पूर्व हिंदी में उनका एक अन्य उपन्यास “रिजर्व्डwon” भी प्रकाशित हो चुका है। उनका यह उपन्यास आरक्षण के ज्वलंत मुद्दे को लेकर लिखा गया था। मनु जी बहुत खूबसूरती से सामाजिक सरोकारों पर अपने भावों और विचारों को अभिव्यक्त करते हैं।

उनका हाल ही में प्रकाशित उपन्यास ‘बलिदानम्’ ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित उपन्यास है। इसमें भी उन्होंने प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों ही रूपों में सामाजिक मुद्दों को पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया है।

जहां तक इस उपन्यास के कालक्रम का प्रश्न है यह 4000 वर्ष पूर्व पृथयानी राजवंश को लेकर रचा गया है, जिसके केंद्रबिंदु 2000 वर्ष (ईसा पूर्व) पृथयानी के राजा अश्रवण, रानी नंदिनी तथा उनका परिवार है।

अपने प्रारंभिक भाग में तो यह ऐतिहासिक परिवेश पर रची गई सामान्य कहानी प्रतीत होती है परंतु, जैसे-जैसे कहानी गति प्राप्त करती है उसमें एक नई सोच और सामाजिक क्रांति का बीजारोपण होता हुआ दिखाई देता है। यह उपन्यास पारिवारिक अंतर्द्वंद और उससे उत्पन्न मानसिक अंतर्द्वंद को बखूबी प्रस्तुत करता है। अनेक उतार-चढ़ावों से गुज़रती हुई कहानी अपने चरमोत्कर्ष तक पहुंचती है, जो कल्पना से परे है। उपन्यासकार ने उपन्यास में मानवीय गुण और दोषों दोनों को समान रूप से पाठकों के सम्मुख बड़ी कुशलता से प्रस्तुत किया है।

उपन्यास का भरपूर आनंद तो इसे पढ़ने के बाद ही लिया जा सकता है।

142 पृष्ठों के इस छोटे से उपन्यास को मनु सौंखला ने 14 छोटे-छोटे खंडों में विभाजित किया है तथा प्रत्येक खंड को अलग-अलग शीर्षक भी उन्होंने दिए हैं। यह शीर्षक उपन्यास के विभिन्न पक्षों को पाठकों के समक्ष उजागर करते हैं।

अपने पिछले उपन्यास रिजर्व्ड की अपेक्षा इस उपन्यास में सौंखला जी ने प्रकृति के मनोरम दृश्यों से पाठकों का साक्षात्कार कराया है। पृथयानी राज्य की राजधानी कर्मावती के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन कथाकार ने इस प्रकार किया है कि पाठक उस पर मुग्ध हुए बिना रह ही नहीं सकता। प्रकृति चित्रण करने में सौंखला जी बेजोड़ हैं। उनके इस प्रकार के वर्णन सिद्ध कर देते हैं कि वह प्रकृति प्रेमी हैं और प्रकृति के संसर्ग ने ही उन्हें प्रकृति का अनुपम चितेरा बनाया है।

अब हम ‘बलिदानम्’ उपन्यास की भाषा पर आते हैं। उपन्यास की भाषा उसकी उत्कृष्टता में सबसे बड़ी बाधा है क्यूंकि सौंखला जी ने इसमें व्यावहारिक भाषा का प्रयोग किया है जिसमे उर्दू शब्दों की अधिकता है। इसके विपरीत राजपरिवारों में मुख्यतः औपचारिक भाषा का प्रयोग किया जाता है, जिसमें सम्मानजनक शब्दों की बहुलता होती है। इसी कारण यह भाषा कथानक के काल क्रम को दर्शाने में असमर्थ है।

‘बलिदानम्’ उपन्यास में कथाकार ने वर्णनात्मक शैली का ही अधिक प्रयोग किया है। इस शैली का सौंदर्य पृथयानी राज्य के प्राकृतिक सौंदर्य, राज महल की भव्यता पात्रों के व्यक्तित्व चित्रण आदि में देखा जा सकता है। कथानक के बीच बीच में रोचकता उत्पन्न करने के लिए काव्यात्मक शैली भी अपना प्रभाव पाठकों पर छोड़ती है। संवादात्मक शैली का प्रयोग भी सौंखला जी ने कथानक को प्रवाह देने और पात्रों की चरित्रगत विशेषताओं को उजागर करने हेतु किया है।

उपन्यास में पात्रों की भरमार नहीं है यही कारण है कि कथानक में कहीं कोई उलझाव दिखाई नहीं देता वरन वह अबाध गति से चरमोत्कर्ष की ओर बढ़ता हुआ दिखाई देता है। कथाकार का पात्र संयोजन उच्च कोटि का है। उनके सभी पात्र गुण और दोष सहित पाठकों के सम्मुख अवतरित होते हैं। रुद्रा और मैत्रयी दोनों ही पात्र पाठकों पर अपनी अमिट छाप छोड़ते हैं।

मैं पहले ही स्पष्ट कर चुकी हूं कि सौंखला जी समाज से सरोकार रखने वाले व्यक्ति हैं इसीलिए उन्होंने सामाजिक मुद्दों को अपने उपन्यासों में महत्वपूर्ण स्थान दिया है। वह नारी सम्मान के प्रबल पक्षधर हैं और इस उपन्यास में भी उन्होंने समाज में नारी के साथ होने वाले अनाचार का मुद्दा बखूबी उठाया है।

उपन्यासकार ने अपने इस उपन्यास में मानव संवेगों का चित्रण बड़ी कुशलता से किया है। उनके सभी पात्रों में मानवोचित ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्य, घृणा, प्रेम, पक्षपात आदि भाव आसानी से देखे जा सकते हैं तथा उन्होंने इनका बड़ी बारीकी से चित्रण किया है जो यह स्पष्ट कर देता है कि वह मानव मनोविज्ञान के पारखी हैं।

यह उपन्यास पृथयानी राज्य के युवराजों की जीवन गाथा प्रस्तुत करता है। अतः अनेक दांव-पेंचों और उतार-चढ़ावों से होता हुआ यह अपने चरमोत्कर्ष तक पहुंचता है। आरंभ से रोचक होने के साथ-साथ उपन्यास का अंत भी बहुत ही रहस्यमय तरीके से होता है।

उपन्यास का शीर्षक कथानक के अनुरूप है और यह स्वत: ही स्पष्ट कर देता है कि यह उपन्यास बहुत कुछ चाहे -अनचाहे बलिदान की कथा कहता है लेकिन यह बलिदान कितना निम्न कोटि का है इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।

उपन्यास में संपादन संबंधी अनेक त्रुटियां हैं। मात्राएं, व्याकरण और शब्द संबंधी अशुद्धियां उपन्यास का सबसे कमज़ोर पक्ष है, जिसे अगले संस्करण में सुधारा जा सकता है।

मनु सौंखला जी का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित यह एक ऐसा उपन्यास है जो सभी वर्ग के पाठकों द्वारा पढ़ा जा सकता है। उनका यह उपन्यास अपने पहले उपन्यास की अपेक्षा काफ़ी निखरा हुआ है और उनके लेखन की उत्कृष्टता को सिद्ध करता है।

मैं उनके सफ़ल और उज्जवल भविष्य की कामना करती हूं।

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