विषय: 4/5
लेखन शैली: 4.5/5
उपयोगिता: 4.5/5

आज जिन कवयित्री के कविता संग्रह के विषय में मैं चर्चा करने जा रही हूं वह आभासीय पटल की ख्याति प्राप्त रचनाकार हैं।

विगत वर्षों में करोना जैसी महामारी से जहां अपार जन- धन की हानि हुई ,वहीं विभिन्न क्षेत्रों में ऐसी प्रतिभाएं उभर कर सामने आईं, जो अपनी घर- गृहस्थी की ज़िम्मेदारियां निभाने में पूर्णत: निमग्न थीं। रेखा जी भी एक ऐसी ही सशक्त कवयित्री हैं, जिनकी सृजन यात्रा करोना काल में ही प्रारंभ हुई। सर्वप्रथम मैं पाठकों से रेखा जी का संक्षेप में परिचय कराना चाहूंगी।

रेखा जी का जन्म जुलाई 1965 को मुंगेर बिहार में हुआ उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा नोट्रे डेम अकैडमी, मुंगेर और सेंट जोसेफ कॉन्वेंट, पटना से प्राप्त की। 1986 में आपने वूमंस कॉलेज, पटना से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा 1987 से वैवाहिक जीवन और गृहस्थी की ज़िम्मेदारियों का कुशलतापूर्वक निर्वाह करती चली आ रहीं हैं। एक कवि ह्रदय उनके भीतर सुप्तावस्था में मौजूद था, जो अनुकूल परिस्थितियां पाते ही करोना काल में जागृत हो उठा। उनका लेखन जो 2020 में प्रारंभ हुआ उसने 3 वर्षों की अल्पावधि में एक सशक्त कवयित्री के रूप में साहित्य जगत में अपनी पैठ बना ली।

रेखा जी की रचनाएं अनेक साझा संकलनों में प्रकाशित हो चुकी हैं और रेखांकन (Rekhankan) उनका पहला प्रकाशित एकल काव्य संकलन है। इसमें उनकी 102 कविताओं को संकलित किया गया है।

उनकी कविताओं में एक ऐसा अजब सा सम्मोहन है कि एक बार जब उनकी रचनाओं को पढ़ना प्रारंभ करते हैं तो बीच में किसी भी प्रकार का व्यवधान अच्छा नहीं लगता ‌।

मैंने उनकी कविताओं को बहुत एकाग्रता से पढ़ा है | उनकी कविताओं में गहराई है, अनूठी सोच है जो जीवन के विभिन्न पक्षों पर विचार करने को प्रेरित करती है। आपकी कुछ उल्लेखनीय कविताएं हैं- अंजुरी दे, इंतज़ार, खामोशियां, मैं हूं, यह लाल रंग, जो मिलने आओ तो, जीवन सरगम, क्या, जीवन और ओस कण, समय, मैं और तुम, चलो मुस्कान बांटे आदि हैं।

यदि विषय की दृष्टि से देखा जाए तो रेखा जी की कविताओं में जीवन के इंद्रधनुषी रंग बिखरे दिखाई देते हैं | आपकी रचनाओं में प्राकृतिक सौंदर्य के अनुपम चित्र हैं, जीवन संघर्ष के विविध रूप हैं ,प्रेम में पूर्ण समर्पण है तो विरह की घनीभूत वेदना भी है।

आधुनिक नारी की विचारधारा है। उसका त्याग और समर्पण भी उनकी लेखनी से अदृश्य नहीं हो पाया है। यदि यह कहा जाए कि स्त्री के विविध रूपों और अनुभवों का चित्रण उन्होंने जिस कुशलता से किया है वह अनूठा है,अति उत्तम है।

परंतु, पुरुष जीवन के विविध पक्ष भी उनकी रचनाओं में बहुतायत से देखने को मिलते हैं आपकी कविता ‘यह लाल रंग’ विशेष रूप से उल्लेखनीय है। जिसका शब्द- शब्द मन और मस्तिष्क को झकझोर कर रख देता है | यह एक ऐसा विषय है जिस पर बात करना ही अनुचित समझा जाता है,लेखन तो दूर की बात है। एक महिला के जीवन के उस पक्ष को जिसमें उसे परिवार और समाज से अलग-थलग कर दिया जाता है उस महिला के अंतर्मन की वेदना को जिस बेबाकी से रेखा जी ने अपनी कविता में उकेरा है, वह सराहनीय है ।

जिस प्रकार आपने जीवन और जगत से जुड़े विषयों पर कविताओं का सृजन किया है उसी प्रकार आपकी भाषा भी जीवन और जगत से जुड़ी सीधी- सहज भाषा है। जिसमें व्यवहारिक शब्दों का ही अधिक प्रयोग आपने किया है। परंतु, शुद्ध साहित्यिक हिंदी शब्दों का प्रयोग भी उन्होंने अपने भावों की अभिव्यक्ति में आवश्यकता के अनुसार चुन-चुन कर किया है। इसीलिए आपकी रचनाएं सहज ग्राह्य हैं। उनका शब्द – भंडार व्यापक है और शब्दों का चयन बहुत संतुलित और भाव संप्रेषण में सहायक है ।

रेखा जी की लेखन शैली की सबसे बड़ी विशेषता है समासिकता अर्थात कम से कम शब्दों में अपने भावों और विचारों को पाठकों तक पहुंचाने में उन्हें महारत हासिल है।

रेखा ड्रोलिया जी का यह प्रथम काव्य संकलन है और निस्संदेह यह विषय,भाव, लेखन, भाषा और शैली प्रत्येक दृष्टि से उत्कृष्ट है।

इतना ही नहीं रेखा जी ने केवल पुरुष के प्रभुत्व का ही नहीं वरन उसके अंतर्मन की पीड़ा को अभिव्यक्त करने में भी सफलता प्राप्त की है ।इस संकलन में प्रकृति का सौंदर्य है तो प्रकृति के अंधाधुंध दोहन की पीड़ा भी है । उनकी इस कृति में एक और धर्म है तो दूसरी ओर धार्मिक स्थानों का भी मनोहारी चित्रण देखने को मिलता है ।

संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि रेखा जी का काव्य संकलन रेखांकन (Rekhankan) प्रत्येक वर्ग और अभिरुचि रखने वाले पाठकों के लिए पठनीय है।

कवयित्री बधाई की पात्र हैं कि उन्होंने प्रथम प्रकाशित संकलन में ही पाठकों को एक से बढ़कर एक रचनाओं का रसास्वादन कराया है। अपनी इस कृति के लिए रेखा जी बधाई की पात्र हैं |

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